छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के ग्रामीण कृशक परिवारों में रोजगार विविधीकरण-एक आर्थिक अध्ययन
मदन गोपाल पाटले1, डाॅ. ए.के. पांडेय 2
1शोधार्थी, अर्थशास्त्र अघ्ययनशाला, प्ंा रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालयए रायपुर
2प्राध्यापक, अर्थशास्त्र अघ्ययनशाला, प्ंा रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालयए रायपुर
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भारत एक कृशि प्रधान एवं गांवो का देष है गांवो के अधिकांष आबादी निम्न आय वर्ग की है जिसमें भूमिहीन मजदूर, सीमांत एवं लघु कृशक एवं समाज के आय कमजोर वर्ग के व्यक्ति सम्मिलित है देष में 79 प्रतिषत कृशक परिवार का जीवन स्तर केवल कृशि कार्य पर निर्भर है जिसमें कृशक परिवारों को छिपी हुई बेरोजगारी का सामना करना पडता है इसलिए ग्रामीण कृशक यथासंभव एवं यथाषक्ति अन्य विविध आर्थिक क्रियाकलापों से अपने जीवन स्तर को ऊपर उठाने का प्रयास करते है जैसे पषुपालन, मुर्गी पालन, मतस्य पालन, तथा वानिकी आदि इसे ही रोजगार विविधीकरण कहते है इस प्रकार विविधीकरण के द्वारा कृशि क्षेत्र की बढती अनुत्पादकता, अदृष्य, बेरोजगारी निर्धनता जैसे गंभीर समस्या को दूर किया जा सकता है।
ज्ञम्ल्ॅव्त्क्ैरू रोजगार विविधीकरण, अदृष्य बेरोजगारी, निर्धनता आदि।
प्रस्तावना
भारत एक कृशि प्रधान देष है यहा के लगभग 58.2 प्रतिषत कार्यषील जनसंख्या कृशि पर निर्भर है परन्तु कृशि क्षेत्र में नये व्याप्त अनिष्चिता एवं अल्प उत्पादकता के कारण कृशकों की आर्थिक दषा शोचनीय बनी रहती हैं कृशकों को वर्ष पर्यन्त रोजगार नहीं मिल पाती है राष्ट्रीय आय में कृशि का
योगदान कम होती जा रही है ग्रामीण अर्थव्यवस्था दो क्षेत्रों में बटा हुआ हैं 1 कृशि क्षेत्र 2 गैर कृशि क्षेत्र कृशि क्षेत्र में भू जोतो के घटते आकार के कारण रोजगार के अवसर सृजित नहीं हो पाती है इस कारण ग्रामीण लोगों का ध्यान कृशि से हटकर गैर कृशि क्षेत्र कि ओर आकर्शित हो रही हैं। जिसमें रोजगार के अवसर अधिक विद्यमान है कृशि कार्य के उपरान्त जिन अवधियों में कृशक बेकार रहते है वे गैर कृशि क्षेत्र से जुडकर अपनी अल्प बेरोजगारी को दूर कर सकते है और वह गरीबी, अदृष्य बेरोजबारी, जैसे विभिन्न समस्याओं से छुटकारा पाकर अपनी आर्थिक दषा में सुधार कर सकता है।
उदे्ष्य-
शोध प्रविधि- यह शोध कार्य प्राथमिक संमको पर आधरित है शोध कार्य के लिए कुल 300 उत्तरदाताओं को चयन किया गया है प्राप्त संमकों का विष्लेशण प्रतिषत विधि के माध्यम से किया गया हैं।
उपरोक्त तालिका कुल उत्तरदाताओं के रोजगार के संबंध में प्रस्तुत है उपरोक्त तालिका से ज्ञात होता है कि स्वरोजगार श्रेणी 43.33 प्रतिषत उत्तरदाताओं को कृशि क्षेत्र में स्वरोजगार प्राप्त है 9.33 प्रतिषत उत्तरदाताओं को गैर कृशि क्षेत्र में स्वरोजगार प्राप्त है 8 प्रतिषत वेतन भोगी श्रेणी के थे सामयिक रोजगार श्रेणी में 30 प्रतिषत उत्तरदाताओं को कृशि क्षेत्र में रोजगार प्राप्त है 5.67 प्रतिषत गैर कृशि क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करते है तथा 3.67 प्रतिषत उत्तरदाता अन्य क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त करते है अध्ययन से ज्ञात होता है कि स्व रोजगार क्षेत्र में कृशि ही सबसे ज्यादा रोजगार प्राप्त करने वाला क्षेत्र है।
उपरोक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि 171 उत्तरदाता यह विचार रखते है कि कृशि योजनाओं को रोजगार पर सार्थक प्रभाव पडा है वहीं 129 उत्तरदाता यह विचार रखते है कि कृशि योजनाओं का रोजगार पर सार्थक प्रभाव नहीं पडा है कुल प्रतिषत विष्लेशण किया जाये तो 57 प्रतिषत उत्तरदाता मानते है कि योजनाओं का सार्थक प्रभाव पडा है वहीं 43 प्रतिषत उत्तरदाता का विचार है कि योजनाओं का प्रभाव नही पडा है उपरोक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि जन सामान्य की धारणा है कि योजनाओं का लाभ कृशि क्षेत्र में सार्थक होता है।
विष्लेशण रोजगार विविधीकरण को प्रोत्साहित करने वाली योजनाओं से लागू होने के पष्चात रोजगार क्षेत्र में परिवर्तन के संदर्भ निर्मित है 101 उत्तरदाताओं ने स्वयं के रोजगार को अपनाया 77 उत्तरदाताओं ने निजी क्षेत्र में रोजगार प्राप्त हुआ 26 उत्तरदाताओं ने सरकारी क्षेत्र में रोजगार प्राप्त हुआ और 15 उत्तरदाताओं ने कहा की पंचायत से रोजगार प्राप्त हुआ 81 उत्तरदाताओं ने कहा कि उनके रोजगार के क्षेत्र में कोई परिवर्तन नहीं हुआ उपरोक्त तालिका से स्पश्ट है कि विविधीकरण के पष्चात लोगों का रूझान स्वयं के व्यवसाय पर अधिक है वहीं उदारीकरण के पष्चात उद्योगो की संख्या में वृद्धि आई यह तालिका मे देखा जा सकता है कि निजी क्षेत्रों में कार्य दूसरा बडा रोजगार का क्षेत्र ज्ञात होता है।
उपरोक्त तालिका से स्पश्ट होता है 29 प्रतिषत उत्तरदाताओं ने कहा कि उनकी मासिक आय में वृद्धि नहीं हुई है 47 प्रतिषत उत्तरदाताओं ने कहा कि उनके आय में वृद्धि 1000 से 2000 रूपये कि वृद्धि हुई है 9.67 प्रतिषत उत्तरदाताओं ने कहा की उनकी आय में 2001 से 3000 रूपये तक की वृद्धि हुई है 6़.33 प्रतिषत उत्तरदाताओं ने कहा कि उनके आय में 3001 से 4000 तक की वृद्धि हुई है तथा 8 प्रतिषत उत्तरदाताओं ने कहा की उनकी आय में 4001 या उससे अधिक की हुई है।
निश्कर्श-
1 निदर्ष परिवारों में कृशि क्षेत्र से प्राप्त स्वरोजगार का संख्या 43.33 प्रतिषत सर्वाधिक है तथा गैर कृशि से प्राप्त स्वरोजगार की संख्या 9.3 प्रतिषत कम है अर्थात कृशि क्षेत्र से अभी भी रोजगार कि प्राप्ति अधिक होती हैं क्योंकि रोजगार वृद्धि करके कारण एक बडा जन समुदाय लगभग 30 प्रतिषत लोग कृशि से रोजगार प्राप्त कर रहें है।ं
2. निदर्ष परिवारों में सरकार के द्वारा चलायी जाने वाली कृशि योजनाओं का भी सार्थक प्रभाव पडा है कृशि योजनाओं 57 प्रतिषत परिवारों के आय एवं रोजगार पर सार्थक पभाव पडा है अर्थात कृशि में विविधीकरण से रोजगार के क्षेत्र में वृद्धि हुई है।
3. निदर्ष परिवारों को रोजगार विविधीकरण के उपरांत स्वयं से प्राप्त रोजगार का प्रतिषत 33.67 सर्वाधिक है तथा पंचायत से प्राप्त रोजगार 5 प्रतिषत सबसे कम है अर्थात स्वयं से प्राप्त रोजगार का प्रतिषत सर्वाधिक इसलिए है क्योंकि विविधीकरण के पष्चात लोगो के रूझान स्वयं के व्यवसाय पर अधिक है।
4. निदर्ष परिवारों में रोजगार विविधीकरण के पष्चात अनेक आय में वृद्धि हुई है 1000 से 2000 आय वर्ग के लोगों में सर्वाधिक 47 प्रतिषत वृद्धि हुई है तथा सबसे कम 3001 से 4000 आय वर्ग के लोगो की आय में केवल 6.33 प्रतिषत ही वृद्धि हुई है।
सुझाव-
1 कृशि क्षेत्र में अनुत्पादक श्रम षक्ति की अधिकता है अतः रोजगार के अतिरिक्त अवसर प्रदान करने कि आवष्यकता है।
2. खाद्य एवं गैर खाद्य कृशि प्रसंस्करण की स्थापना करना चाहिए जिसमें कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर एवं प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होगी।
3. कृशि क्षेत्र के अन्य सहायक क्षेत्र जैसे दुग्ध उत्पादन, मुर्गी पालन, मछली पालन क्षेत्रों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
4. कृशि क्षेत्र में उदारीकरण का और विस्तार करना चाहिए।
5. छत्तीसगढ़ में बागवानी क्षेत्र का विकास कम हुआ है अतः इसके प्रसंस्करण उद्योगो को बढावा देना चाहिए।
संदर्भ ग्रंथसूची-
1. पी.सी. महालनोबिस, एम्त्लायमेंट जनरेषन, इन रूरल इण्डिया, खादी ग्रामोंद्योग 1991,
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4. डाॅ. मिश्रा ओ.पी. ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों के माध्यम से आय और रोजगार सृजन
5. गोपाल, डाॅ. उशा बाल विकास और श्रमिक कल्याण योजना, योजना भवन नई दिल्ली
6. पंत, नवीन बाल मजदूरी समस्या और समाधान, योजना, 1995 योजना भवन नई दिल्ली
Received on 15.11.2018 Modified on 18.12.2019
Accepted on 19.02.2019 © A&V Publications All right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(1):260-262.